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पूर्ववर्तियों निकायों की पृष्ठभूमि
स्वतंत्रता से पहले की अवधि में, "घरेलू उद्योग की सुरक्षा के लिए आवश्यक उपायों पर सरकार को सलाह देने के लिए" वाणिज्य मंत्रालय के तहत प्रशुल्क बोर्ड अस्तित्व में था।
प्रशुल्क आयोग की स्थापना, प्रशुल्क बोर्ड को वैधानिक शक्तियों और कार्यों के साथ विलय करके, भारतीय उद्योगों हेतु संरक्षण की सिफारिश करने किसी भी माल के शुल्कों में परिवर्तन करने, माल की डंपिंग के संबंध में कार्रवाई करने और स्वतः अध्ययन करने के लिए वर्ष 1951 में प्रशुल्क आयोग अधिनियम 1951 के तहत की गई थी।
औद्योगिक लागत और मूल्य ब्यूरो (BICP) की स्थापना वर्ष 1970 में, आईडीआर अधिनियम के तहत, वैधानिक शक्तियों के साथ, प्रशासनिक सुधार आयोग की सिफारिश पर की गई थी ताकि औद्योगिक लागतों के निर्धारण, लागत में कमी और औद्योगिक दक्षता में सुधार तथा विभिन्न उद्योगों के संबंध में मूल्य निर्धारण से संबंधित विभिन्न पहलुओं पर परामर्श दिया जा सके तथा सूचना मांगी जा सके।
पुराने प्रशुल्क आयोग को सख्त आयात और विदेशी मुद्रा विनियमन के कारण टीसी (निरसन) अधिनियम 1976 के तहत परिसमाप्त कर दिया गया था क्योंकि प्रशुल्क विनियमन के माध्यम से घरेलू उद्योग के संरक्षण की आवश्यकता ने महत्व खो दिया था और दूसरे वित्त आयोग के प्रेक्षणों के अनुसार प्रशुल्क आयोग के कार्य अधिकांशतः बीआईसीपी से मिलते-जुलते थे।
बीआईसीपी में से, राष्ट्रीय औषधि मूल्य निर्धारण प्राधिकरण (एनपीपीए) को थोक औषधों और यौगिकों के मूल्य निर्धारण के कार्यों के लिए, रसायन और उर्वरक मंत्रालय के अधीन रखा गया।
वर्तमान प्रशुल्क आयोग
प्रशुल्क आयोग को वस्तुओं और सेवाओं में व्यापार के संबंध में प्रशुल्क और प्रशुल्क से संबंधित मामलों, जो देश के बृहत्त आर्थिक हितों और अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं पर प्रभाव डालते हैं, पर सरकार को परामर्श देने के लिए एक स्वतंत्र विशेषज्ञ निकाय के रूप में औद्योगिक नीति और संवर्धन विभाग के अधीन 2 सितंबर, 1997 को स्थापित किया गया था।
औद्योगिक लागत और मूल्य ब्यूरो (बीआईसीपी) को अप्रैल, 1999 में प्रशुल्क आयोग के साथ विलय कर दिया गया था। बीआईसीपी की भूमिका लागत में कमी, औद्योगिक दक्षता में सुधार, ऊर्जा लेखा परीक्षा और निजी एवं सार्वजनिक क्षेत्र के औद्योगिक उत्पादों और सेवाओं के मूल्य निर्धारण से संबंधित पहलुओं पर सरकार को निरंतर सलाह देने की थी।
प्रशुल्क आयोग वर्तमान में बदलते आर्थिक परिदृश्य की आवश्यकताओं को पूरा करने और नई विनिर्माण नीति के अनुरूप भारतीय उद्योग की प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ाने से संबंधित पहलुओं पर ध्यान देने पर बल दे रहा है।
किए जा रहे कार्य
उत्पादन, व्यापार और उपभोक्ताओं सहित विभिन्न क्षेत्रों के हितों को देखते हुए और अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं को ध्यान में रखते हुए वस्तुओं और सेवाओं में व्यापार के संबंध में प्रशुल्क और सभी प्रशुल्क संबंधी मुद्दों के बारे में सरकार द्वारा निर्दिष्ट मामलों पर एक विशेषज्ञ निकाय के रूप में सिफारिशें करने के लिए।
एक बहु-विषयक टीम के माध्यम से कपड़ा, कृषि और ऑटोमोबाइल सूचना प्रौद्योगिकी, रसायन, इस्पात और इंजीनियरिंग सामान जैसे चुनिंदा क्षेत्रों पर विस्तृत प्रभाव विश्लेषण करना।
अन्य देशों के संबंध में विभिन्न वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादन की लागत और उनकी प्रतिस्पर्धात्मकता पर तकनीकी अध्ययन करना।
मूल्य निर्धारण, दक्षता, सुधार और लागत में कमी, सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के मामले और औद्योगिक उत्पाद और सेवाओं सहित) बीआईसीपी के मूल कार्य
प्रशासनिक मूल्य तंत्र (एपीएम) के तहत वस्तुएं
राज्य एकाधिकार / सार्वजनिक उपयोगिताऐं
सरकारी प्रापण
मूल्य की निगरानी
अन्य
सरकार द्वारा समय-समय पर सौंपे जाने वाले अन्य कार्यों को करना।
डीपीआईआईटी
अध्ययन क्षेत्र और क्षमता
अध्ययन (सेक्टर वार)
ऑनगोइंग स्टडीज
संग्रह
राजभाषा
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